Thursday, 19 December 2024
Wednesday, 4 December 2024
Friday, 29 November 2024
Life At Sea
Subbu was gazing the sea, his thoughts were muddled with the ongoing tensions , the alert sent by the weather department cautioning the fishermen not to venture into the sea. The vast immeasurable mass of water body was not only his life ,it was the lifeline of his whole community. Today again this urgent alert had shaken up and torn his core remembering the fatal day of 26 December 2005.
The Tsunami that had hit hard his village near the coastal area has revived some of his unpleasant memories. Today Subbu doesn't want to see the same ,his eyes are again fixed at the rolling waves as if asking ," what is your moody for today"?
Subbu was the youngest son of Ramcharan , a fisherman by profession. Being the youngest son he had very little work to do . Subbu used to go to a school in the near by vicinity , a local government school, where the air seem pleasant to him. It had been his great past time from the very first day he entered the school to observe the waves , understand the weather pattern and also sink deep into the mystery of the ocean. Since childhood his Baba had told him stories about the sea ,how revered it is to them and also the lessons that it gave them when they see the vast mass before their eyes. Slowly his thoughts took him into his childhood days when Subbu holding hands of his Baba went near the sea. Baba," I am going to play in the sand for a while , by the time your boat arrives , may I go.? As you will call me up I will be back for sure, said Subbu. "Yes you may go and play but remember do not go too far, you know the sea sometimes turns treacherous , said Baba. I will definitely heed to your words, need not worry, I will play with the sand and shells and won't go too far, smiled Subbu.
Those days had been the best days for him. After coming home from school, Subbu would request his Baba to take him near the coast so that he could play there. Now it had turned as a routine. Subbu had also befriended with some boys of his age. They played all kinds of games. sometimes making castles with sand or letting the water pass through a passage to create a small pond,later watch the waves come and take it all away with a gliding force.
Sometimes the group of boys would show their excitement when big boats carrying fishes ,crabs and lobsters would anchor near by. They would shout and climb the boats to see them. Aah! " this is the biggest catch my father has ever made", shouted Subbu. His excitement was all through in the air. Today he was boasting about his catch to his friends. All was quiet happy and easy going by then.
Suddenly Subbu shudders and feels the force of the winds as if blowing him away, his thoughts took him back to the day when Tsunami had hit his village ,all of a sudden the joy, happiness family and friends got drowned into the deep sea some how few people got saved, the wrath and fury of the nature had an impression on him that was not going to get vanished. Later , the whole world was talking about the devastation which had again taught humans a big lesson.
Years rolled by, the pain slowly started diminishing, now again the area was bustling with activities. All had forgotten the pain and were making merry again. But today Subbu feels his nerves racing. He was not happy , his instincts were giving him a caution. He had learnt this art of knowing the waves and their patterns since childhood. Now he had mastered it all. A close link with the sea had taught him not only to respect the nature but also to understand it.
Today , the beaches were full of people, everyone was busy enjoying every small bit that they could see around. But Subbu was worried. He knew the sea within is not at peace, there was a great force that was about to break the coast.He somehow wants to talk to those uninteresting people who weren't paying heed to the warning . He shouted with his full force to call those tourists playing near the waters. Suddenly the wind became wild and his efforts to caution people went unheard. The sea thundered ,big wavy clouds started forming, now there was panic all around. People shouted and ran for their lives but every one couldn't withstand against the power of the massive waves.
Subbu As quick as light , got up to save lives as many as he could.Suddenly Subbu a simple silent man had turned a monster fighting against the powerful force. It was said ,he saved many but was later found dead and silent near the sea.
Monday, 25 November 2024
बदलाव
जीवन के झंझावातों से हर किसी का सामना होता ही है , हाँ यही अटल सत्य भी है। धूल भरी आंधिओं के गुबार में थोड़े समय के लिए असहज हो जाना कोई नई बात नहीं है। इन आंधिओं को फिर चीर कर चल पड़ना ही जिंदिगी है, यही सत्य है।
यह संसार ही है जो हमें अच्छे बुरे का ज्ञान करवाता है। ऐसा कोई विरला ही होगा ,जिसे देर सबेर इस संसार का भान नहीं हुआ होगा। ऐसा ही था संजीता का संसार। संजीता एक कुशल टेक्नोक्रैट थी। बचपन से ही अपने पढ़ाई मे अव्वल थी। वक्त के साथ नई तक़नीक में प्रवीण होती चली गयी। आज अपने क्षेत्र की बड़ी पहचान बन चुकी थी। ऑफिस में उसका बड़ा ही दबदबा था। नाम और शौहरत अब उसकी पहचान बन चुके थे। समय ने उसे एक कंपनी का सीईओ बना दिया था। आज जिस मुकाम पैर बैठी थी उस जगह से अपने पुराने अच्छे पहलुओं को देख रही थी, आज मीटिंग ख़त्म कर फिर से कौतूहल वश अपने पुराने दिनों में फिर से जाना चाहती है। अपने प्राइवेट सेक्रेटरी को डोंट डिस्टर्ब की हिदायत दे संजीता अपने पिछले दिनों में धीमे धीमे कब चली जाती है उसे पता भी नहीं चलता।
आज संजीता बहुत खुश माँ को बताती है कि कैसे आज उसकी अध्यापिका ने भरे कोर्ट में केवल उससे ही शराब विरोध आंदोलन में अपने विचार रखने को कहा। कैसे एक कक्षा आठ की छात्रा ने एक प्रतिनिधि के रूप में SDM साहेब को ज्ञापन दिया, कैसे ख़ुशी से संजीता आज माँ को सब बता रही थी। धीरे धीरे संजीता फिर अपने कॉलेज के दिनों में चली गयी।
बड़े संघर्षों से भरे दिन थे, पर जुनून भरपूर था,आँखो में सुनहरे भविष्य के सपने भरे थे ,संघर्ष तो केवल सपनों को मजबूती देने में मददगार ही थे। पर कहते है ना हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, एक तरफ संजीता एक सफल स्त्री के रूप में जानी जाती है और और दूसरा जहां उसका संघर्ष कभी ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता। उसका पारिवारिक जीवन उसके लिए बोझ से कम नहीं था। हर सदस्य का सम्मान उनका ख्याल रखना आज जैसे सब भारी पड़ने लगा था। जब जीवन में झूठे साथी होते हैं , हर तरह के प्रपंच कर अपने को सिद्ध करने में चतुर होते हैं तब मन खिन्न और विरोध की स्थिति में आ जाता है। ऐसा ही जीवन संजीता का भी था। बाहर उसके काम के प्रशंशक थे तो भीतर उसके अपने ही ईर्ष्या करते थे।
संजीता अपनी व्यस्तता के कारण परिवार वालों की ईर्ष्या को कभी नहीं समझ पाई थी। वह तो उनकी ख़ुशी में ही खुद खुश थी। पर एक दिन ऐसा भी आया जब उसका विश्वास की पूरी तरह हिल गया । लगा जैसे कि किसी चक्रव्यू में फंस कर रह गयी हो,उससे बाहर निकल पाना बहुत ही कठिन प्रतीत हो रहा था। पर कहते हैं न यदि आप सही हो तो परिणाम भी सुखद ही होंगे। आज संजीता ने मन कड़ा कर अब एक नई दिशा और बदलाव की ओर चल पड़ने का खुद से वादा किया। आज उसे यह भान हो गया कि विधि का जो भी विधान होगा वही उसे मंज़ूर होगा। वह केवल अब अपने कार्यस्थली पर अपने को समर्पित करेगी,और उसी दिशा में अपना बेहतर देने का प्रयास करेगी।
वक़्त पंछी बन तेज़ी से उड़ चला , समय की आंधिओं को चीर कर आज वह बदल चुकी थी, पिछले जंजालों को तोड़ अपने स्वर्णिम भविष्य को संजोये हुए अपनी मंज़िल पर पहुंच चुकी थी।
मीना शर्मा
Wednesday, 10 July 2024
संस्मरण
बात पिछले वर्ष की है, मुझे कक्षा सात के छात्रों को नैतिक शिक्षा पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।सभी छात्र शांत और एक नए अध्यापक के आने के इंतजार में बैठे हुए थे।मेरे कक्षा में प्रवेश करते ही सभी सुंदर नेत्राें ने भी मुझे समझने की भरकस कोशिश की। शिष्टाचारवश सबने अपने नामों से मेरा परिचय करवाया। फिर शुरू हुई कक्षा की गति।
हर एक छात्र अपने संजोए मूल्यों को हर प्रकार से सही समझ से बताने और सही आचरण करने के बारे में उत्त्साहित होकर संवाद मे भाग ले रहा था।
चूंकि यह मेरा पहला दिन था, इस कक्षा के साथ , मैने भी छात्रों के अनुरूप के छोटी से कहानी कह कक्षा समाप्ति की घोषणा यह कहते हुए की कि अगली कक्षा में आप सभी से किसी एक विषय में चर्चा करेंगें और संक्षेप में उससे संबंधित नैतिक मूल्य पर आप सब के विचार भी सुनेंगे।
सभी बच्चों ने मेरा अभिवादन किया और मैं अपने दूसरे काम में लग गई।दूसरे सप्ताह मुझे फिर उस कक्षा में जाने का मौका मिला।आज मेरा वहां स्वागत पुनः ऊर्जावान छात्रों से हुआ।निखिल,रुद्र,वरुण , दिव्या और न जानें कितने और नाम सभी बच्चे आज उनके सामने आने वाली नैतिक उलझनों और उसे कैसे निपटा जाए,ऐसे विषय के साथ मेरे सम्मुख खड़े थे।
बाल मन और उनके संसार पर सही गलत कर प्रभाव, जो कुछ वे मोबाइल या अन्य सोशल मीडिया पर देख रहे हैं ,क्या यह सब सही है?इन सभी ढेरों प्रश्नों के साथ आज पंक्तिबद्ध हो सभी छात्र खड़े थे। आज मैने समझा की इन नन्ही कलियों को अपनी इस छलावा अप्राकृतिक संसार पर कितने रोष है। साथ में यह डर भी है की इस छलावे में कहीं फस ने जाए।
मेरा मन आज पुनः अकुला गया। समझ नही आ रहा था कि क्या सांसारिक चमक दमक हमारे नन्हे मुन्नों को सही दिशा दिखा भी पायेगी या नहीं?
Monday, 24 June 2024
मित्रता
दोस्ती और दोस्तों के किस्से हर भाषा हर ज़बान पर मीठी चीनी की तरह ही घुले हुए से मालूम होते हैं। ऐसी ही कहानी दो दोस्तों की है जो समय के साथ हर हाल में अपने को उस अटूट गठजोड़ में बांधे रखने की कसमें खा चुके थे।
हरी और श्याम अपने नामों के अनुरूप ही थे। दोनों का परिचय कक्षा चार में हुआ। हरी दिव्या भारती स्कूल का छात्र था। उस ज़माने में कक्षा में प्रवेश आसानी से ही हो जाया करते थे। समय सरल और सादगी से भर होता था। हरी कक्षा में अव्वल आया करता था। दिन अच्छे बीत रहे थे,पर मन में एक दोस्त की कमी हमेशा परेशान करती थी। वैसे कक्षा में सभी से बातें हो जाया करती थी पर वो बात नहीं थी।
जुलाई का महीना था ,उमस भरी गर्मी में स्कूल का ग्रीष्म अवकाश के बाद खुलना ,मन को पहले से ही तर बतर कर रहा था। ५ जुलाई से कक्षा प्रारम्भ हुई। स्कूल पहुंच कर देखा तो मानो मेला सा लगा हुआ था।
सभी छात्र अपनी टोलिओं में मग्न अपनी छुट्टिओं की कहानियाँ और देशाटन के किस्से कह रहे थे। हरी उस भीड़ में मानो अकेला सा था। वो तो कही भी नहीं गया था और कोई दिलचस्प किस्सा और कहानी उसके पास सुनाने को नहीं थी।
कक्षा का पहला घंटा शुरू हुआ। मास्टरजी अपने साथ एक नए बालक को लाए थे। मास्टरजी ने हरी से इस नए बालक को अपने साथ बैठाने के लिए कहा। इस नए बालक से फिर उन्होंने अपना परिचय देने को भी कहा।
बालक बोला मेरा नाम श्याम है , मैं जबलपुर से आया हूँ। सभी छात्र अब श्याम को अपनी टोली में शामिल करने के लिए उतावले हो गए। सभी के मन में नए शहर को जानने की चाह जो थी। मध्य अंतराल के समय सब ने श्याम को अपना परिचय दिया। हरी सबसे आखिर में आया उसे मालूम था कि श्याम उससे पक्की दोस्ती नहीं करेगा। वह उदास हो कर एक बेंच पर जा बैठा। श्याम की नज़रें शायद यह सब पहचान गयीं ,वह दौड़ता हुआ हरी के पास आया और बोला "दोस्त सब से मिलने में समय लग गया था थोड़ी देर हो गई ", बस वो दिन था और आज दोनों की दोस्ती को मानो पंख लगाए उड़े जा रही थी।
कक्षा चार से शुरू हुई मित्रता आज एक वृक्ष सी हो चुकी थी। दोनों दोस्त आज नए शहर में अब अपने भाग्य आजमाने के लिए चल पड़े। हर दुःख सुख में साथ देने का वचन दोनों ने ही लिया था। हरी आज एक कॉर्पोरेट जगत का नमी पहचान बन चुका था। श्याम एक नामी बैंक का मैनेजर था।
दोनों में किसी तरह की ऊंचनीच का भाव न था। किसी कुसंगति को अपने बीच में दोनों ने आने नहीं दिया। पर समय सदा एक सा कहाँ रहता है ? हरी अचानक काल के ग्रास में समां गया।
श्याम तो मानो टूट सा ही गया, पर जिंदिगी तो आगे बढ़ने का ही नाम है। अपने दोस्त को दिए हुए वचन को पूरा करने के लिए , श्याम ने हरी के घर की सारी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले लीं और समाज में एक अनूठी दोस्ती की मिसाल कायम की।
Sunday, 16 June 2024
Life : A step ahead
Hi!
The title seems philosophic, but it is what I am experiencing. Life seems has taken a new leap. Still full of riddles to solve. I am here again trying to gather my courage and my own self.
I have landed at a new place,a place welcoming all from the nooks and corners of the world. I am a bit nervous, looking to adjust myself with this environ. Every day the soft lulling wind whispers a song to waken me up from by slumber and to get ready to get ready for the new challenges there in line.
Yes, today after a long wait, I feel to rejoiced with everything that God has bestowed me with. I am pulling myself very hard to understand this new pace of happenings going around. Life is not so easy but not too difficult even.
I am thankful to the Almighty to make me see and understand what life really is. My quest still goes on...
Monday, 29 April 2024
प्रताडना भाग ३
तुम समय की रेत पर छोड़ते चलो निशां
रमा आज इस नए निर्णय के साथ पुर जोर कोशिश से पुनः अपनी जिंदिगी को समेटने का प्रयास करते हुए एक दृढ कदम को आगे बढ़ा चलती है। वो जानती है की इस नई दुनिया में अकेले बढ़ना उसके लिया आसान नहीं होगा। अपने साहस को संगोजकर वह राह की तलाश में निकल पड़ती है।
अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारिओं के कारण उसे यह आभास नहीं हुआ कि ऐसा दिन भी आजायेगा कि उसे पुनः नई शुरुवाद करनी पड़ेगी। आज हर अख़बार , हर मीडिया स्रोत अपनी आजीविका के लिए रमा ने खंगाल दिए। अख़बार के छोटे से कोने में उसे उमीदों की किरण नज़र आई। झटपट उसने आवेदन कर दिया। वह दिन भी आया जब उसकी परीक्षा की घडी करीब थी। आज वह पहले से ज्यादा गंभीर और इस अवसर को पाने के लिए आतुर थी।
चार बरस ससुराल में घोर कष्ट के थे। सबसे बड़ी बहु के फर्ज़ पहले दिन ही विस्तार से सुना दिये गया थे। सब कष्ट तो रमा ख़ुशी से सह ही रही थी , पर आज जब अपने पति को गलत राह की ओर जाते देखा तो उसके पैर से ज़मीं ही खिच गयी। आज सब ससुराल में उससे अपरिचत सा बर्ताव करने लगे। सब रमा के पति की ओर हो लिए। किसीने यह जानने की कोशिश भी नहीं की कि रमा को कैसा महसूस हो रहा होगा। रमा इस कटुता को अब सहन नहीं करना चाहती है और अपनी मंज़िल की तरफ चल पड़ती है।
आज ईश्वर भी उसकी उमीदों में सहायक बने। रमा अब एक क्लर्क की नौकरी पा चुकी थी। अब आजीविका का साधन मिल जाने से मन के इरादे और बुलंद हो गए। इधर कैट की परीक्षा के रजिस्ट्रेशन भी शरू हो गए थे। ऑफिस के काम के साथ रमा ने अपनी तैयारी भी शरू कर दी। अब तो जैसे मन मंजिल को मनो पंख लग गए। पिछली जिन्दिगी के बारेमें सोचने का समय अब कहाँ था। पर यदा कदा किताबों के पन्ने पलटते समय वो मंज़र भी जीवित हो जाता। सास का ज़ोर से चिल्लाना "अभी तक एक पोते का सुख नहीं मिला।" हज़ारों जले कटे शब्द आज फिर सिरहन दे रहे थे।
हिम्मत जुटकर रमा फिर अपने रोज की दिनचर्या में व्यस्त हो जाती है। उसे मालूम है कि अगर पुरानी बातों में उलझ कर रही तो अपने को सही मुकाम तक नहीं पहुंचा पायेगी।
दिन रात एक कर मेहनत करती रही। आखिर वो दिन आ ही गया, रमा ने कैट की परीक्षा उत्तीर्ण की। आज वह अपनी फीस का इंतज़ाम भी कर लाई। आखों में अच्छे भविष्य के सपनो को सहेजे हुए रमा आज आईआईएम गुजरात के लिए रवाना हो गयी।
Tuesday, 23 April 2024
प्रताड़ना (भाग २ )
नई दिशा
जीवन की उपापोह के बीच रमा पुनः सुंतलन बनाती हुई अपनी नित्य दिनचर्या में व्यस्त हो जाती है। समय का चक्र आज फिर उस की परीक्षा लेने को आतुर दिखाई देता है। रमा इन सब से अनजान घर गृहस्थी में सिमटी हुई उस अंधकार को समझ नहीं पाती। पति की गतिविधियां दिनों दिन कुमार्ग की और बढ़ती जा रही थी। एक दिन ऐसा समय आ गया जब मर्यादा की सभी सीमाएं लाँघ कर रमा का पति सब के सामने आ खडा हुआ। आनन् फन्नान में घर के सभी लोग उस स्थिति को सँभालने के लिए आतुर दिखे। निशब्द शांत वातावरण हर एक को भीतर ही भीतर खा रहा था। पुरुष प्रधान यह परिवार भी हर स्थिति में अपने पुत्र के अवगुणों को हर तरह से ढकने का प्रयास कर रहा था। पिता , भाई व बहिन केवल इस बात से चिंतित थे कि कैसे वर्तमान स्थिति में अनुकूल निपटारा हो जाए। रमा को हम परिवार का वास्ता देके चुप करा ही देंगे।
पर आज रमा जाग चुकी थी। वो इतने बरसों से यही सब देख सुन रही थी। आज सब के ज़ोर ज़बरदस्ती को वह नहीं सहन करेगी। आज वह मन बना चुकी थी। सब के सामने अपने निर्णय को कह सुनाती है। सब के सामने आपने पति को परित्याग करने की बात कह देती है।
आज इस कठोर निर्णय से मानो सब को सांप सूंघ गया। पूरा परिवार उसके सम्मान को अभी तक उसकी दीनता का परिचायक समझता था। स्वप्न में भी किसी ने आज इस दृढ निर्णय की अपेक्षा रमा से नहीं की थी। रमा जानती थी अब हर हाल में उसे दृढ़ कदम उठाने ही होंगे। बार बार पर इस प्रताड़ना के जहर को पीने से अच्छा नई दिशा की ओर कदम बढ़ाना ही होगा।