बदलाव
जीवन के झंझावातों से हर किसी का सामना होता ही है , हाँ यही अटल सत्य भी है। धूल भरी आंधिओं के गुबार में थोड़े समय के लिए असहज हो जाना कोई नई बात नहीं है। इन आंधिओं को फिर चीर कर चल पड़ना ही जिंदिगी है, यही सत्य है।
यह संसार ही है जो हमें अच्छे बुरे का ज्ञान करवाता है। ऐसा कोई विरला ही होगा ,जिसे देर सबेर इस संसार का भान नहीं हुआ होगा। ऐसा ही था संजीता का संसार। संजीता एक कुशल टेक्नोक्रैट थी। बचपन से ही अपने पढ़ाई मे अव्वल थी। वक्त के साथ नई तक़नीक में प्रवीण होती चली गयी। आज अपने क्षेत्र की बड़ी पहचान बन चुकी थी। ऑफिस में उसका बड़ा ही दबदबा था। नाम और शौहरत अब उसकी पहचान बन चुके थे। समय ने उसे एक कंपनी का सीईओ बना दिया था। आज जिस मुकाम पैर बैठी थी उस जगह से अपने पुराने अच्छे पहलुओं को देख रही थी, आज मीटिंग ख़त्म कर फिर से कौतूहल वश अपने पुराने दिनों में फिर से जाना चाहती है। अपने प्राइवेट सेक्रेटरी को डोंट डिस्टर्ब की हिदायत दे संजीता अपने पिछले दिनों में धीमे धीमे कब चली जाती है उसे पता भी नहीं चलता।
आज संजीता बहुत खुश माँ को बताती है कि कैसे आज उसकी अध्यापिका ने भरे कोर्ट में केवल उससे ही शराब विरोध आंदोलन में अपने विचार रखने को कहा। कैसे एक कक्षा आठ की छात्रा ने एक प्रतिनिधि के रूप में SDM साहेब को ज्ञापन दिया, कैसे ख़ुशी से संजीता आज माँ को सब बता रही थी। धीरे धीरे संजीता फिर अपने कॉलेज के दिनों में चली गयी।
बड़े संघर्षों से भरे दिन थे, पर जुनून भरपूर था,आँखो में सुनहरे भविष्य के सपने भरे थे ,संघर्ष तो केवल सपनों को मजबूती देने में मददगार ही थे। पर कहते है ना हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, एक तरफ संजीता एक सफल स्त्री के रूप में जानी जाती है और और दूसरा जहां उसका संघर्ष कभी ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता। उसका पारिवारिक जीवन उसके लिए बोझ से कम नहीं था। हर सदस्य का सम्मान उनका ख्याल रखना आज जैसे सब भारी पड़ने लगा था। जब जीवन में झूठे साथी होते हैं , हर तरह के प्रपंच कर अपने को सिद्ध करने में चतुर होते हैं तब मन खिन्न और विरोध की स्थिति में आ जाता है। ऐसा ही जीवन संजीता का भी था। बाहर उसके काम के प्रशंशक थे तो भीतर उसके अपने ही ईर्ष्या करते थे।
संजीता अपनी व्यस्तता के कारण परिवार वालों की ईर्ष्या को कभी नहीं समझ पाई थी। वह तो उनकी ख़ुशी में ही खुद खुश थी। पर एक दिन ऐसा भी आया जब उसका विश्वास की पूरी तरह हिल गया । लगा जैसे कि किसी चक्रव्यू में फंस कर रह गयी हो,उससे बाहर निकल पाना बहुत ही कठिन प्रतीत हो रहा था। पर कहते हैं न यदि आप सही हो तो परिणाम भी सुखद ही होंगे। आज संजीता ने मन कड़ा कर अब एक नई दिशा और बदलाव की ओर चल पड़ने का खुद से वादा किया। आज उसे यह भान हो गया कि विधि का जो भी विधान होगा वही उसे मंज़ूर होगा। वह केवल अब अपने कार्यस्थली पर अपने को समर्पित करेगी,और उसी दिशा में अपना बेहतर देने का प्रयास करेगी।
वक़्त पंछी बन तेज़ी से उड़ चला , समय की आंधिओं को चीर कर आज वह बदल चुकी थी, पिछले जंजालों को तोड़ अपने स्वर्णिम भविष्य को संजोये हुए अपनी मंज़िल पर पहुंच चुकी थी।
मीना शर्मा
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