प्रताड़ना (भाग २ )
नई दिशा
जीवन की उपापोह के बीच रमा पुनः सुंतलन बनाती हुई अपनी नित्य दिनचर्या में व्यस्त हो जाती है। समय का चक्र आज फिर उस की परीक्षा लेने को आतुर दिखाई देता है। रमा इन सब से अनजान घर गृहस्थी में सिमटी हुई उस अंधकार को समझ नहीं पाती। पति की गतिविधियां दिनों दिन कुमार्ग की और बढ़ती जा रही थी। एक दिन ऐसा समय आ गया जब मर्यादा की सभी सीमाएं लाँघ कर रमा का पति सब के सामने आ खडा हुआ। आनन् फन्नान में घर के सभी लोग उस स्थिति को सँभालने के लिए आतुर दिखे। निशब्द शांत वातावरण हर एक को भीतर ही भीतर खा रहा था। पुरुष प्रधान यह परिवार भी हर स्थिति में अपने पुत्र के अवगुणों को हर तरह से ढकने का प्रयास कर रहा था। पिता , भाई व बहिन केवल इस बात से चिंतित थे कि कैसे वर्तमान स्थिति में अनुकूल निपटारा हो जाए। रमा को हम परिवार का वास्ता देके चुप करा ही देंगे।
पर आज रमा जाग चुकी थी। वो इतने बरसों से यही सब देख सुन रही थी। आज सब के ज़ोर ज़बरदस्ती को वह नहीं सहन करेगी। आज वह मन बना चुकी थी। सब के सामने अपने निर्णय को कह सुनाती है। सब के सामने आपने पति को परित्याग करने की बात कह देती है।
आज इस कठोर निर्णय से मानो सब को सांप सूंघ गया। पूरा परिवार उसके सम्मान को अभी तक उसकी दीनता का परिचायक समझता था। स्वप्न में भी किसी ने आज इस दृढ निर्णय की अपेक्षा रमा से नहीं की थी। रमा जानती थी अब हर हाल में उसे दृढ़ कदम उठाने ही होंगे। बार बार पर इस प्रताड़ना के जहर को पीने से अच्छा नई दिशा की ओर कदम बढ़ाना ही होगा।
No comments:
Post a Comment