Monday, 29 April 2024

  प्रताडना  भाग ३ 

तुम समय की रेत  पर छोड़ते  चलो निशां 

 रमा  आज इस नए निर्णय के साथ  पुर जोर कोशिश से पुनः अपनी  जिंदिगी  को समेटने का प्रयास करते हुए  एक दृढ कदम को आगे बढ़ा  चलती है।  वो जानती है की इस नई  दुनिया में अकेले बढ़ना उसके लिया आसान नहीं होगा।  अपने  साहस  को संगोजकर  वह राह की तलाश में निकल पड़ती  है। 

अपनी  सामाजिक ज़िम्मेदारिओं  के कारण उसे यह आभास नहीं हुआ  कि   ऐसा दिन  भी आजायेगा कि उसे  पुनः नई  शुरुवाद करनी  पड़ेगी।  आज हर अख़बार , हर मीडिया स्रोत   अपनी आजीविका के लिए  रमा ने खंगाल दिए।  अख़बार के छोटे से कोने में उसे उमीदों की किरण नज़र आई।  झटपट उसने आवेदन कर दिया।  वह दिन भी आया जब उसकी परीक्षा की घडी करीब थी।  आज वह पहले से ज्यादा गंभीर और इस  अवसर को पाने  के लिए आतुर थी। 

चार बरस ससुराल में   घोर कष्ट के थे। सबसे बड़ी  बहु के फर्ज़ पहले दिन ही विस्तार से सुना दिये गया थे। सब कष्ट तो रमा ख़ुशी से सह ही रही थी , पर आज जब अपने पति को गलत राह की ओर जाते देखा तो उसके पैर  से ज़मीं ही खिच गयी।  आज सब ससुराल में उससे अपरिचत सा बर्ताव करने लगे। सब रमा के पति की ओर  हो लिए।  किसीने यह  जानने  की कोशिश भी नहीं की कि  रमा को कैसा  महसूस हो रहा होगा।  रमा इस कटुता  को अब सहन नहीं करना चाहती है और अपनी मंज़िल की तरफ चल पड़ती है।

आज ईश्वर भी  उसकी उमीदों में सहायक बने।  रमा अब एक क्लर्क की नौकरी पा चुकी थी।  अब आजीविका का साधन मिल जाने  से  मन के इरादे और बुलंद हो गए। इधर  कैट की परीक्षा के  रजिस्ट्रेशन भी शरू हो गए थे।  ऑफिस के काम के साथ रमा ने अपनी  तैयारी भी शरू  कर दी। अब  तो जैसे मन मंजिल  को मनो पंख लग गए।  पिछली  जिन्दिगी  के बारेमें सोचने का समय अब कहाँ  था।  पर यदा कदा  किताबों के पन्ने  पलटते  समय  वो मंज़र भी जीवित हो जाता।  सास का ज़ोर से चिल्लाना  "अभी तक एक पोते  का सुख नहीं मिला।"  हज़ारों  जले कटे शब्द आज फिर  सिरहन दे रहे थे। 

हिम्मत जुटकर रमा फिर अपने रोज की दिनचर्या में व्यस्त हो जाती है।  उसे मालूम है कि  अगर पुरानी  बातों में उलझ  कर रही तो अपने को सही मुकाम तक नहीं पहुंचा पायेगी। 

दिन रात एक कर मेहनत करती रही।  आखिर वो दिन आ ही गया, रमा ने कैट की परीक्षा उत्तीर्ण की। आज वह अपनी फीस का इंतज़ाम भी कर लाई।  आखों में अच्छे भविष्य के सपनो को सहेजे हुए  रमा आज आईआईएम गुजरात के लिए रवाना  हो गयी।



 

Tuesday, 23 April 2024

 प्रताड़ना (भाग २ )

 नई  दिशा 

जीवन की उपापोह के  बीच   रमा  पुनः  सुंतलन बनाती  हुई अपनी  नित्य  दिनचर्या में व्यस्त हो जाती है।  समय  का चक्र आज फिर उस की  परीक्षा लेने को आतुर दिखाई देता है।  रमा इन सब से अनजान  घर गृहस्थी  में सिमटी हुई उस अंधकार को समझ  नहीं पाती।  पति की गतिविधियां दिनों  दिन    कुमार्ग की और बढ़ती  जा रही थी।  एक दिन ऐसा समय  आ गया जब मर्यादा की सभी सीमाएं लाँघ कर  रमा का  पति  सब के सामने आ खडा  हुआ।  आनन् फन्नान  में  घर के सभी लोग उस स्थिति को  सँभालने के लिए आतुर दिखे।   निशब्द शांत वातावरण  हर एक को भीतर ही भीतर खा रहा था।  पुरुष प्रधान यह  परिवार भी  हर स्थिति  में अपने  पुत्र के अवगुणों  को हर तरह से ढकने  का प्रयास  कर रहा था।  पिता , भाई  व  बहिन  केवल इस बात से चिंतित थे कि  कैसे वर्तमान स्थिति  में अनुकूल निपटारा हो जाए।  रमा को हम परिवार का वास्ता देके चुप करा ही देंगे।  

पर आज रमा  जाग चुकी थी।   वो  इतने बरसों  से  यही सब देख  सुन रही थी।  आज सब के ज़ोर ज़बरदस्ती को वह नहीं सहन करेगी।  आज वह मन  बना चुकी थी।  सब के सामने  अपने निर्णय  को कह  सुनाती है।  सब के सामने  आपने पति को परित्याग करने की बात कह देती है। 

आज इस कठोर निर्णय  से मानो सब को सांप सूंघ गया।  पूरा परिवार उसके सम्मान को अभी तक उसकी दीनता का परिचायक समझता  था।  स्वप्न में भी किसी ने  आज इस दृढ निर्णय  की अपेक्षा रमा से  नहीं की थी।  रमा जानती थी  अब हर हाल में उसे  दृढ़ कदम उठाने ही  होंगे।  बार  बार पर इस प्रताड़ना  के जहर को पीने से अच्छा  नई दिशा की ओर कदम बढ़ाना ही  होगा।