प्रताडना भाग ३
तुम समय की रेत पर छोड़ते चलो निशां
रमा आज इस नए निर्णय के साथ पुर जोर कोशिश से पुनः अपनी जिंदिगी को समेटने का प्रयास करते हुए एक दृढ कदम को आगे बढ़ा चलती है। वो जानती है की इस नई दुनिया में अकेले बढ़ना उसके लिया आसान नहीं होगा। अपने साहस को संगोजकर वह राह की तलाश में निकल पड़ती है।
अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारिओं के कारण उसे यह आभास नहीं हुआ कि ऐसा दिन भी आजायेगा कि उसे पुनः नई शुरुवाद करनी पड़ेगी। आज हर अख़बार , हर मीडिया स्रोत अपनी आजीविका के लिए रमा ने खंगाल दिए। अख़बार के छोटे से कोने में उसे उमीदों की किरण नज़र आई। झटपट उसने आवेदन कर दिया। वह दिन भी आया जब उसकी परीक्षा की घडी करीब थी। आज वह पहले से ज्यादा गंभीर और इस अवसर को पाने के लिए आतुर थी।
चार बरस ससुराल में घोर कष्ट के थे। सबसे बड़ी बहु के फर्ज़ पहले दिन ही विस्तार से सुना दिये गया थे। सब कष्ट तो रमा ख़ुशी से सह ही रही थी , पर आज जब अपने पति को गलत राह की ओर जाते देखा तो उसके पैर से ज़मीं ही खिच गयी। आज सब ससुराल में उससे अपरिचत सा बर्ताव करने लगे। सब रमा के पति की ओर हो लिए। किसीने यह जानने की कोशिश भी नहीं की कि रमा को कैसा महसूस हो रहा होगा। रमा इस कटुता को अब सहन नहीं करना चाहती है और अपनी मंज़िल की तरफ चल पड़ती है।
आज ईश्वर भी उसकी उमीदों में सहायक बने। रमा अब एक क्लर्क की नौकरी पा चुकी थी। अब आजीविका का साधन मिल जाने से मन के इरादे और बुलंद हो गए। इधर कैट की परीक्षा के रजिस्ट्रेशन भी शरू हो गए थे। ऑफिस के काम के साथ रमा ने अपनी तैयारी भी शरू कर दी। अब तो जैसे मन मंजिल को मनो पंख लग गए। पिछली जिन्दिगी के बारेमें सोचने का समय अब कहाँ था। पर यदा कदा किताबों के पन्ने पलटते समय वो मंज़र भी जीवित हो जाता। सास का ज़ोर से चिल्लाना "अभी तक एक पोते का सुख नहीं मिला।" हज़ारों जले कटे शब्द आज फिर सिरहन दे रहे थे।
हिम्मत जुटकर रमा फिर अपने रोज की दिनचर्या में व्यस्त हो जाती है। उसे मालूम है कि अगर पुरानी बातों में उलझ कर रही तो अपने को सही मुकाम तक नहीं पहुंचा पायेगी।
दिन रात एक कर मेहनत करती रही। आखिर वो दिन आ ही गया, रमा ने कैट की परीक्षा उत्तीर्ण की। आज वह अपनी फीस का इंतज़ाम भी कर लाई। आखों में अच्छे भविष्य के सपनो को सहेजे हुए रमा आज आईआईएम गुजरात के लिए रवाना हो गयी।