Sunday, 6 September 2020















झूठ  से बच कर रहो 

 नन्हे  कदमों  से एक बच्चा जब उंगली पकड़  चलना सीखता है, 
उस उंगली   को थामे ही  तब संसार रूपी पहेली  को सुलझाने  चल पड़ता   है 
सब कहते  हैं  सब समझाते  ,  झूठ  से बच कर रहो,
यह नन्हा  बालक शून्य बन ,तब जिज्ञासा से भर टटोलता  है सब का यह  मन । 

वक्त  ही बलिहारी है,वो नन्हे कदम अब आगे  चल पड़ते  हैं 
इस अनबूझ  पहेली को अब हर जोर  समझने  चलते हैं  
सीख और शिक्षा  आज फरेब लग पड़ती 
जब अपने ही सब झूठ  की राह  पर चल पड़ते हैं। 
मन उद्वेलित हो जाता है ,
 जब   अडिग अटल सत्य अंतिम सांसे  लेता है 
सीख़ वो बचपन की  हाय फिर प्रश्न चिन्ह बन जाती है।  

संवेदनाओं  की कमी  हर ओर ,असफलताओं  की झड़ी  हर ओर 
मन को पुनः समझती है ,यदि रहना  है सफल जीवन में
तो चल पर फिर  निर्मल तन मन से 
दूर उस छल ,उस आडम्बर से ,
झूठ केइस  प्रपंची मायाजाल से। 


मीना  शर्मा 



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