संस्मरण
बात पिछले वर्ष की है, मुझे कक्षा सात के छात्रों को नैतिक शिक्षा पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।सभी छात्र शांत और एक नए अध्यापक के आने के इंतजार में बैठे हुए थे।मेरे कक्षा में प्रवेश करते ही सभी सुंदर नेत्राें ने भी मुझे समझने की भरकस कोशिश की। शिष्टाचारवश सबने अपने नामों से मेरा परिचय करवाया। फिर शुरू हुई कक्षा की गति।
हर एक छात्र अपने संजोए मूल्यों को हर प्रकार से सही समझ से बताने और सही आचरण करने के बारे में उत्त्साहित होकर संवाद मे भाग ले रहा था।
चूंकि यह मेरा पहला दिन था, इस कक्षा के साथ , मैने भी छात्रों के अनुरूप के छोटी से कहानी कह कक्षा समाप्ति की घोषणा यह कहते हुए की कि अगली कक्षा में आप सभी से किसी एक विषय में चर्चा करेंगें और संक्षेप में उससे संबंधित नैतिक मूल्य पर आप सब के विचार भी सुनेंगे।
सभी बच्चों ने मेरा अभिवादन किया और मैं अपने दूसरे काम में लग गई।दूसरे सप्ताह मुझे फिर उस कक्षा में जाने का मौका मिला।आज मेरा वहां स्वागत पुनः ऊर्जावान छात्रों से हुआ।निखिल,रुद्र,वरुण , दिव्या और न जानें कितने और नाम सभी बच्चे आज उनके सामने आने वाली नैतिक उलझनों और उसे कैसे निपटा जाए,ऐसे विषय के साथ मेरे सम्मुख खड़े थे।
बाल मन और उनके संसार पर सही गलत कर प्रभाव, जो कुछ वे मोबाइल या अन्य सोशल मीडिया पर देख रहे हैं ,क्या यह सब सही है?इन सभी ढेरों प्रश्नों के साथ आज पंक्तिबद्ध हो सभी छात्र खड़े थे। आज मैने समझा की इन नन्ही कलियों को अपनी इस छलावा अप्राकृतिक संसार पर कितने रोष है। साथ में यह डर भी है की इस छलावे में कहीं फस ने जाए।
मेरा मन आज पुनः अकुला गया। समझ नही आ रहा था कि क्या सांसारिक चमक दमक हमारे नन्हे मुन्नों को सही दिशा दिखा भी पायेगी या नहीं?